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Want to Know..How Much I Love U...

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Want to know How much I love U Count the stars if U can... Want to know How much I like U Count the drops of the rain... Want to know What I feel for U Look deep into my eyes... Want to know What I can do for U Ask me to die... Just let me sing this song for U And tell U I m there for U... Want to know What I think of U Read my words... Want to know What I talk about U Go deep down in my world... Want to know Where I can take U Hold my hands... Want to know What I can give U Be my Best Friend... Just let me sing this song for U And tell U I m there for U...

निर्भय: एक और मलाला बन पाती मैं

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  वो रात भी तारो भरी थी मैं आखों में अनगिनत सपने लिए घूम रही थी हर रोज़  की तरह घर लौटना था मुझे हर छोटी सी बात माँ को बतलानी थी मुझे.......... मैं कितनी खुश थी दिन खूब गुजरा था मेरा हर छोटी बड़ी खुशियों को समेटे हुए सपनो की दुनिया में लौट रही थी.......... मैं निडर, अंजान अपने आने वाले कल से हर पल को जी रही थी एक आज़ाद परिंदे सी थकी उड़ान से, घरोंदे को लौट रही थी........... मालूम ना था शिकारी बैठा  है जाल बिछाए बेखॊफ़ शिकार के अंजाम से पलक झपकते ही झपटा मुझ पर मानो किसी अधिकार से........ एक एक कर पंख नोंच लिए उसने मेरे ना छोड़ा किसी उड़ान को इतने ज़ख्म दिए उसने मुझे ना गुंजाईश बची और ज़ख्म देने को........... ना जाने कितनी नज़रों ने देखा उस रोज़  मुझे पर कदम ना कोई रुके मैं तो लड़ रही थी हालातों से पर लाचार मुझे वो दिखे............. कुछ लोग उम्र पूछते हैं उस शिकारी की कुछ लोग सवाल उठाते हैं आज़ादी पर मेरी ये कैसा दिवालियापन है सोच का जहाँ सही गलत की कोई पहचान नहीं............ काश के जिंदा रह पाती मैं फिर निर्भय होकर लड़ पाती मैं ना चेहरा, ना नाम छुपाती मैं दुनिया से एक और मलाला बन पाती मैं निर

तू जितना मुझे भुलाएगी ...........

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मैं नदिया का नीर नहीं जो बहता चला जाऊंगा मैं तो समन्द्र की  लहरें हूँ लोटकर वापस आऊंगा तू जितना मुझे  भुलाएगी , मैं उतना याद आऊंगा ........ मैं रेत पर खीचीं लकीर नहीं जो पानी में मिट जाऊंगा मैं लकीर हूँ तेरे हाथों की ओर गहरा होता जाऊंगा तू जितना मुझे  भुलाएगी , मैं उतना याद आऊंगा ........ मैं कोई गुजरा वक़्त नहीं जो लोट कर ना आऊंगा शाम ढले रात बनकर सुबह उजाला बन लोट आऊंगा तू जितना मुझे  भुलाएगी , मैं उतना याद आऊंगा ........ माना के शरीर हूँ माटी का माटी में मिल जाऊंगा बनकर भीगी माटी की सुगंध हर सावन लोट आऊंगा तू जितना मुझे  भुलाएगी , मैं उतना याद आऊंगा ........ मुझे भूल पाना मुमकिन नहीं मैं इश्क हूँ , कोई बुरा सपना नहीं बंद आखों में सपना बनकर खुली आखों से नज़र आऊंगा हर कहीं तू जितना मुझे  भुलाएगी , मैं उतना याद आऊंगा सखी ........

लकीर का फकीर .......

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किसी सरहद से नहीं पहचान मेरी ना वाकिफ हूँ किसी धर्म से मैं मैं तो हूँ लकीर का फकीर यारों बस मोहोब्बत  करना जानता हूँ मैं ....... गैरों  से नहीं कोई परहेज़ मुझे ना अपनों को कोई ख़ास दर्ज़ा देता हूँ मैं मैं तो हूँ लकीर का फकीर यारों हर इंसा में अपना कोई ढूँढता हूँ मैं ...... कौन मंत्री, कौन संत्री, इससे नहीं कोई वास्ता मुझे ना कोई घराना पहचानता हूँ मैं मैं तो हूँ लकीर का फकीर यारों कर्म से इंसा को पहचानता हूँ मैं ........ क्या कामयाबी, क्या विफ़लता, मेरी समझ से हैं परे ना किसी लाचारी को पहचानता हूँ मैं मैं तो हूँ लकीर का फकीर यारों इंसा के जस्बे को सलाम करता हूँ मैं ..... हाथों की लकीरों में, मैं ढूँढता नहीं किस्मत अपनी ना किसी खुदा की रहमत का मोहताज़ हूँ मैं मैं तो हूँ लकीर का फकीर यारों जो मिला अभी तक, उसी के लायक खुदको समझता हूँ मैं .......... कहते हैं इस लकीर के परे भी है दुनिया जिसे मैं जानता नहीं मैं लकीर का फकीर ही ठीक हूँ यारों मैं सोच अपनी बदलना चाहता नहीं .....

एक सफ़ेद सा आँचल है वो ...........

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भर मुट्ठी में रंग ईश्वर ने जब दे मारे माटी के पुतले पर उठ खड़ी हुई एक नटखट बाला आखों में सपने, अधरों पर मीठी बोली के रंग लेकर....... सर्द मौसम की रोमानियत उसमें ग्रीष्म ऋतु की तपिश उसमें कभी पतझड़ सी टूट कर बिखर जाती है वो कभी झूल जाती है सावन के झूलों में........ नदिया सी चीर गुजर जाती है दिलों को इठलाती-बलखाती वो रास्तों में सागर सी गहरी सोच है उसकी लहरों से बिखरते जस्बात हैं उसमें....... शशि सा शीतल मन है उसका रवि सा तेज है उसके चेहरे पर उजाले की पारदर्शिता है उसमें सियाह रात सा सुकूं है भीतर......... हवाओं सी ढूँढ लेती है वो रास्ता सितारों सी फैल जाती है ज़िंदगी में बरखा सी दबा देती है वो हर धुल को माटी की सुगंध सी फ़ैल जाती है साँसों में........ क्या कहूं क्या रंग है उसका एक रंग में ना ढली है वो हर रंग में भीगा  होली सा एक सफ़ेद सा आँचल है वो...........

दिल पे लगेगी...... तो बात बनेगी

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कोई तो तूफ़ा है जो धुल उड़ा रहा है ज़िंदगी के आईने को धुंधला कर रहा है पानी बनकर किसी को तो बरसना होगा इस धुल को उड़ने से रोकना होगा दिल पे लगेगी तो बात बनेगी, वरना ज़िंदगी यूहीं चलती रहेगी....... कब तक यूहीं एक जिंदा ज़िंदगी दफ़न होती रहेगी एक नन्ही सी कली खिलने से पहले तोड़ी जाती रहेगी या फिर कोई बनकर वीरांगना उठ खड़ी होगी कोई फर्क नहीं, बेटा हो या बेटी ये कहेगी दिल पे लगेगी तो बात बनेगी, वरना ज़िंदगी यूहीं चलती रहेगी....... ये वेहशी दरिंदे क्या यूहीं घुमते रहेंगे कभी सरे बाज़ार, कभी छुपकर आबरू लूटते रहेंगे या फिर कोई बनकर कृष्ण उठ खड़ा होगा चीर हरण द्रौपदी का होने से रोख लेगा दिल पे लगेगी तो बात बनेगी, वरना ज़िंदगी यूहीं चलती रहेगी....... ये लालच की आग क्या यूहीं दहकती रहेगी दहेज़ की अग्नि में क्या नारी  यूहीं सती होती रहेगी या फिर कोई बनकर महाकाल उठ खड़ा होगा इस प्रथा को मृत्यु दंड सुना देगा दिल पे लगेगी तो बात बनेगी, वरना ज़िंदगी यूहीं चलती रहेगी....... ये भ्रष्टाचार कब तक राज हम पर करता रहेगा ज़मीर को हमारे अपना गुलाम बनाये रखेगा या फिर कोई बनकर गाँधी उठ खड़

The Cleavage Day: The Fine Line of Difference

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Mother’s Day, Father’s Day, Women Day, Valentine Day, Birthday………………….the list seems to be endless. Apart form having same suffix “Day” these events share  much needed common thing in today’s chaotic & hectic life i.e. Celebrations & Cause. Be it a celebration of the presence of your loved one’s in your life or fighting & highlighting the cause of environment, diseases etc. The year long calendar is inundated with so many such days that celebrations can be a continuous process. Imagine a world when “Sunday, Monday………………..January, February………” would be rechristened and known for a specific cause or celebration. Does it sound like consumerism promoted by some MNC’S & Market Forces or it is the result of lack of awareness and vacuum of happiness in people life? Get an idea…..because it can not only change your life but after-life also. Courtesy Wonderbra: A lingerie Company ……….Now we have March 30 celebrated as “The Cleavage Day “ . Indeed! What a deep thoug